Monday, June 30, 2008

Tumhe kya dun?

Tumhe kuch dena chahta hun...
kya dun, es uljhan main hun,
tumhe main kya dun?

Tumhe chand dun, ya tare dun,
ya tum bin bitaye,
wo udash sisakte rate dun,
Tumhe aakir kya dun?

Tumhare judai main jo,
Diwaro aur patharo par jo,
Ungaliya se khuraj kar,
Tumse milte julte jo,
Taswir banai hai,
Wo hi tumhe dun,
Kaise tumhe apne zazbaat dun?
Tumhe aakhir kya dun?

Tumhe kya dun, Tutti tare dun,
ya apne bikharte khayalat dun,
Tumhe kya dun?
Tumhe chand dun ya tare dun,
Khud ko to maine "nilaam" kar diya,
Ab Tumhe kya dun,
Yahi uljhan hai ki tumhe kya dun.......
Tumhe kya dun......

ज़ीन्दा लाश

इस कदर अपनी,
जिंदगी
से हताश हूँ
मानो चलती फिरती कोई ज़ीन्दा लाश हूँ


मर कर भी जो
कभी पुरा ना हो सकेगा
वैसा ही टुटा हुआ
कोई आश हूँ
चलती फिरती कोई ज़ीन्दा लाश हूँ

अपनी ही खुशबु कोई खोजता हुआ
जो भटकता है उमर भर
वही प्यासी मीर्ग की भटकती हुई तलाश हूँ
टुटा हुआ कोई आश हूँ

बीना जले जो जलते रहने का आभाष दे
वही जलता हुआ जंगल पलाश हूँ
टुटा हुआ कोई आश हूँ

इस कदर अपनी,
जिंदगी से हताश हूँ
मानो चलती फिरती कोई ज़ीन्दा लाश हूँ
सही पहचाना आप ने
नशे मैं लड़खता हुआ
वही विकाश हूँ
टुटा हुआ कोई आश हूँ
जलता जंगल पलाश हूँ


Thursday, June 12, 2008

जाम "तेरे नाम"

काश समाज वाले,
जाम को आम कर देते,
हम पीने वाले भी।
सुबह से शाम कर देते,

इस ज़ीद्गी को हम,
गुमनाम बहुत जी चुके,
पैमाने को जरा भर दे साकी,
ये ज़ीद्गी तब हम,
तेरे नाम कर देते,

हमने पी है कीतनी,
ये तू हीसाब ना रख,
जरा जी को , भर जाने दे साकी
सारी दौलत तुम्हे इनाम कर देते,

जब भी पौ फटती ,
हम होश मैं आते,
किसी का बोझ बाटते,
या फीर कोई एक नेक काम कर देते.....

जल रहा हूँ मैं

जल रहा हूँ मैं ,
कैसे .....
चरागों की तरह ?
नही नही...
उसकी जलन मैं तो,
छिपी है नीश्वर्थ सेवा,
भला मेरे जलन मैं वैसी बात कहाँ,
तो फीर जुगुनू की तरह ,
ना ! ना !
वो जलता है कहाँ?
उसके जलन से,
उसके अस्तित्व पे ,
भला खतरा कहाँ?
तब फीर कीस तरह?
जल रहा हूँ मैं....
बीन आग, बीन धुवाँ,
बीन ताप, बीन उष्मा
मगर मेरा ये हाल,
भला कीसने देखा, कीसने सुना ,
कीसने सुना कीसने सुना.........