इस कदर अपनी,
जिंदगी से हताश हूँ
मानो चलती फिरती कोई ज़ीन्दा लाश हूँ
मर कर भी जो
कभी पुरा ना हो सकेगा
वैसा ही टुटा हुआ
कोई आश हूँ
चलती फिरती कोई ज़ीन्दा लाश हूँ
अपनी ही खुशबु कोई खोजता हुआ
जो भटकता है उमर भर
वही प्यासी मीर्ग की भटकती हुई तलाश हूँ
टुटा हुआ कोई आश हूँ
बीना जले जो जलते रहने का आभाष दे
वही जलता हुआ जंगल पलाश हूँ
टुटा हुआ कोई आश हूँ
इस कदर अपनी,
जिंदगी से हताश हूँ
मानो चलती फिरती कोई ज़ीन्दा लाश हूँ
सही पहचाना आप ने
नशे मैं लड़खता हुआ
वही विकाश हूँ
टुटा हुआ कोई आश हूँ
जलता जंगल पलाश हूँ
Monday, June 30, 2008
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