Thursday, June 12, 2008

जाम "तेरे नाम"

काश समाज वाले,
जाम को आम कर देते,
हम पीने वाले भी।
सुबह से शाम कर देते,

इस ज़ीद्गी को हम,
गुमनाम बहुत जी चुके,
पैमाने को जरा भर दे साकी,
ये ज़ीद्गी तब हम,
तेरे नाम कर देते,

हमने पी है कीतनी,
ये तू हीसाब ना रख,
जरा जी को , भर जाने दे साकी
सारी दौलत तुम्हे इनाम कर देते,

जब भी पौ फटती ,
हम होश मैं आते,
किसी का बोझ बाटते,
या फीर कोई एक नेक काम कर देते.....

जल रहा हूँ मैं

जल रहा हूँ मैं ,
कैसे .....
चरागों की तरह ?
नही नही...
उसकी जलन मैं तो,
छिपी है नीश्वर्थ सेवा,
भला मेरे जलन मैं वैसी बात कहाँ,
तो फीर जुगुनू की तरह ,
ना ! ना !
वो जलता है कहाँ?
उसके जलन से,
उसके अस्तित्व पे ,
भला खतरा कहाँ?
तब फीर कीस तरह?
जल रहा हूँ मैं....
बीन आग, बीन धुवाँ,
बीन ताप, बीन उष्मा
मगर मेरा ये हाल,
भला कीसने देखा, कीसने सुना ,
कीसने सुना कीसने सुना.........