काश समाज वाले,
जाम को आम कर देते,
हम पीने वाले भी।
सुबह से शाम कर देते,
इस ज़ीद्गी को हम,
गुमनाम बहुत जी चुके,
पैमाने को जरा भर दे साकी,
ये ज़ीद्गी तब हम,
तेरे नाम कर देते,
हमने पी है कीतनी,
ये तू हीसाब ना रख,
जरा जी को , भर जाने दे साकी
सारी दौलत तुम्हे इनाम कर देते,
जब भी पौ फटती ,
हम होश मैं आते,
किसी का बोझ बाटते,
या फीर कोई एक नेक काम कर देते.....
Thursday, June 12, 2008
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